Friday, February 27, 2009

पछतावा

कर के वफ़ा तुझसे - मैं पछता रहा हूँ ,

नही जीने की चाहत पर जिए जा रहा हूँ।

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क्यों तूने किया रुसवा - क्यों बीच राह छोड़ा,

जिंदगी के इस सफर में अकेले चल रहा हूँ ।

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छोड़ा जो हाथ तूने - न किसी ने हाथ पकड़ा ,

खुशियों की महफिलों में मैं तनहा ही रह रहा हूँ ।

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दुआ है ये खुदा से - न कभी तू चैन पाए ,

छोड़ के तेरी दुनिया मैं तो चला ही जा रहा हूँ।

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Saturday, February 21, 2009

क्या है पता

ऐ मौत आ मुझको आकर बता ,
कहाँ घर तेरा , तेरा क्या है पता ।
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रोशनी है या कि है अँधेरा वहां ,
है खुशियाँ वहाँ , या फ़िर गम का जहाँ ।
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क्या वहां पर कहीं ऐसा संसार है ,
जहाँ पर सिर्फ़ प्यार ही प्यार है ।
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क्या वहां पर कहीं कुछ पराये भी हैं ,
या वहां पर सभी अपने साये ही हैं ।
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मुझसे सच सच बता , न तू करना दगा ,
वहां नफरत दिलों में है या है वफ़ा ।
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सच तो ये है कि छोड़ दूँ ये जहाँ ,
मिली नफरत वहां भी तो जाऊँगा कहाँ - जाऊंगा कहाँ .........
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Friday, February 20, 2009

मात

ये क्यों इतने इल्जाम पाए हैं हमने ,
की वादे वफ़ा के निभाए हैं हमने ।
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खिलाये थे गुल कि खुशबू मिलेगी,
मगर जख्म काटों से पाए हैं हमने ।
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बचाया बहुत था ग़मों से ये दामन ,
पर खुशी में भी अश्क बहाए हैं हमने ।
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हर तरफ़ हैं वही डराते वीभत्स चेहरे ,
ना जाने किस किस से नजरें चुराई हैं हमने ।
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की आए जो वक्त लडूं दूसरों से ,
तो अपनों से ही मात खाई हैं हमने ।
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ना जाने क्यों माफ़ कर रहा हूँ उनको ,
जिनसे सदा गम ही पाए हैं हमने ।
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Wednesday, February 18, 2009

इंतजार

रुक गई है जिंदगी कोई अरमान नही आते,
खो गई है मंजिलें आख़िर हम कहाँ जाते ।
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इंतजार में चन्द पलों के जिंदगी जाती रही ,
काश वो मुहब्बत भरे कुछ पल हमें मिल पाते ।
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कल हाँ कल यही सोंचते जिंदगी सिर्फ़ इंतजार बन गई ,
वो आएगी जरूर यही सोंचकर देखते रहे सबको आते जाते ।
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इंतजार में कल के आज के ये पल कट नही पाते ,
काश आज के इस सफर में तुम मेरे हमसफ़र बन जाते ।
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ऐसे मैं मन बहलाता हूँ

सोचा करता बैठ अकेले,गत जीवन के सुख-दुख झेले,दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
नहीं खोजने जाता मरहम,होकर अपने प्रति अति निर्मम,उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
आह निकल मुख से जाती है,मानव की ही तो छाती है,लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

Saturday, February 14, 2009

दर्द अपनाता है पराए कौन

दर्द अपनाता है पराए कौन - कौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात - ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं - कौन दुख झेले आज़माए कौन
अब सुकूँ है तो भूलने में है - लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास - देखिये आज याद आए कौन

क्‍यों डरें जिन्‍देगी में क्‍या होगा

क्‍यों डरें जिन्‍देगी में क्‍या होगा
कुछ ना होगा तो तजरूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना उम्‍मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्‍या किसी ने तुम्‍हें छुआ होगा

इंतजार

रुक गई है जिंदगी कोई अरमान नही आते ,
खो गई है मंजिलें आख़िर हम कहाँ जाते।
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इंतजार में चंद पलों के जिंदगी जाती रही ,
काश वो मुहब्बत भरे कुछ पल हमें मिल पाते ।
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कल हाँ कल यही सोंचते जिंदगी सिर्फ़ इंतजार बन गई ,
वो आएगी जरूर यही सोंचकर देखते रहे सबको आते - जाते।
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इंतजार में कल के आज के ये पल नही कट पाते ,
काश आज के इस सफर में तुम मेरे हम सफर बन जाते ।
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Friday, February 13, 2009

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं जब तेरी यादों का मौसम होता है

हम तो बचपन में भी अकेले थे

हम तो बचपन में भी अकेले थे सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे
थीं सजी हसरतें दूकानों पर ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे
ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती मौत के अपने भी सौ झमेले थे

हर ख़ुशी में कोई कमी सी है

हर ख़ुशी में कोई कमी सी है हँसती आँखों में भी नमी सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई गर्द इन पलकों पे जमी सी है
कह गए हम किससे दिल की बात शहर में एक सनसनी सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन आग अब भी कहीं दबी सी है

वफ़ा

यार तन्हाई से डरोगे तो मर जाओगे ,
प्यार इस दुनिया मैं कहीं न पाओगे ।
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भागोगे कितना दूर तुम इस तन्हाई से ,
ऊब जाओगे इस दुनिया की बेवफाई से ।
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कर लो इससे यारी ये वफ़ा दिखायेगी ,
हर वक्त हर कहीं ये साथ निभाएगी ।
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जब कभी गम और परेशानियाँ घेरेंगी तुम्हें ,
रख के सर तेरा अपनी गोद में प्यार से सहलाएगी ।
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जब कभी चाहो इसे आवाज देकर देखना ,
ये कभी माँ कभी बहन तो कभी प्रेमिका बन आएगी ।
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वफ़ा होती है क्या न इससे ज्यादा कोई बताएगा ,
जायेगी साथ तेरे अगर उस जहाँ में "अभी" तू जाएगा ॥
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Thursday, February 12, 2009

मुक्तक

गिरने वालों पर हँसता है ...
ख़ुद फिसलन पर खड़ा हुआ .....
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मैंने सोंचा था यह मंजर ...
देख के वो डर जाएगा ......
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परछाईं

तन्हा रहो तो जानो की तन्हाईयाँ क्या कहती हैं ,
कभी सहा होगा न इतना - गम ये सहती हैं ।
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कभी देखो तो इन वीरानों को - कभी देखो तो इन बेगानों को ,
कभी ये भी अपने हुआ करते थे - जाते क़दमों की आहटें ये कहती हैं ।
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आज फ़िर मैंने ग़मों को दुखी देखा - दूर दूर तक न थी कहीं कोई खुशी देखा ,
यहीं शायद कहीं वो खोया था - उसकी मिटती हुई परछाइयाँ ये कहती हैं ।
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रुका था वहां पर उसे ढूँढा भी बहुत था - पर वो आता ही कैसे जो इस जहाँ में ही नही था ,
चल कहीं और चलें अब वो न आएगा - दूर दूर तक फैली तन्हाईयाँ ये कहती हैं ।
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Tuesday, February 10, 2009

दीवानगी

तन्हाई में ऐ सनम तुम हमको बहुत तड़पाते हो ,
बैठे रहते हो दूर तमाशाई बनके मेरे पास नही आते हो ।
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कहते हैं सब की हो गया हूँ मैं तेरा दीवाना,
ये तो सिर्फ़ जानता हूँ मैं की क्या है तेरा फ़साना ।
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जब भी आती है तेरी याद बंद हो जाती हैं ये आँखें ,
रोकता हूँ बहुत पर बोल देती हैं सब ये उखड़ी सांसें ।
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हम जानते हैं की बिन हमारे तन्हा तुम भी न रह पाओगी ,
अगर हुई मिलने की कसक तो भागे चले आओगे ....भागे चले आओगे ........

जज्बात

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,एक झूठ है आधा सच्चा सा ।
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,एक बहाना है अच्छा अच्छा सा ।
जीवन का एक ऐसा साथी है ,जो दूर हो के पास नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
हवा का एक सुहाना झोंका है ,कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा ।
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,कभी अपना तो कभी बेगानों सा ।
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है ।
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है ।
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

Sunday, February 8, 2009

जिंदगी

चला जा रहा था तन्हा
जिंदगी की राहों में,
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एक कली ने छेड़ा मुझे
ले लिया अपनी बाँहों में,
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ले के बाँहों में मुझे
हौले से वो मुस्करायी ,
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देख कर उसको लगा ऐसा
जैसे पतझड़ में बहार आई,
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थी उसके प्यार में
कुछ ऐसी अदा,
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हो गया मेरा सब कुछ
ख़ुद मुझ से ही जुदा,
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गया था भूल मैं की
आती नही पतझड़ में बहार,
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चली गई वो मुझसे दूर
बिता के साथ दिन दो चार ,
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राहों की वो तन्हाई
फ़िर एक बार मैंने पाई,
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और कुछ भी करना जिंदगी में
पर कभी किसी से दिल न लगाना भाई ......
दिल न लगाना भाई ...............................
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Saturday, February 7, 2009

ईमान

देखा जब भी मैंने जिंदगी को ध्यान से ,
ना बचा कुछ भी जिंदगी में ईमान से ,
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डरता हूँ देख हर तरफ़ चेहरे ये अजनबी ,
लगता है जैसे ना था कोई अपना कभी ,
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हो गए हैं कठीन कितने जिंदगी के रास्ते ,
बिकने लगा है प्यार भी जिंदगी के वास्ते ,
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शुरू किया था जब ये सफर ऐ जिंदगी ,
मालूम ना था आएगा एक ये मकाम भी ,
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जाना पड़ेगा छोड़कर उन सबको तनहा यार ,
किया था जिंदगी में कभी जिन्हें बहुत प्यार ,
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जब तक चल सके हम ये वादा निभाएंगे ,
छोडके तन्हाई में हम उनको ना जायेंगे ........
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Friday, February 6, 2009

सजदा

धुंआ बना के फिजाओं में उड़ा दिया मुझको ,
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको ,
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खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए ,
सवाल ये है की किताबों ने क्या दिया मुझको ,
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सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर ,
हसीन सहर सा किसने सजा दिया मुझको ,
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मैं एक जर्रा बुलंदी को छूने निकला था ,
हवा ने थम के जमीं पर गिरा दिया मुझको ....
......................... धुआं बना के .....................

अब क्या कहना

बहुत कह लिया अब क्या कहना ,

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शब्दों पर विश्वास खो गया ,

अर्थ खोखले बने पड़े हैं ,

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कही अनकही ख़त्म हो चुकी ,

अपने से हम बहुत लड़े हैं,

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नहीं शिकायत कोई उन से ,

हमने सीख लिया है सहना ,

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आते - जाते छड़ ने रुक कर ,

पूछी बहुत पुरानी बातें ,

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चुप चुप रोते बीती हैं ,

अपनी तो अधियारी रातें ,

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जो कुछ अपने हिस्से आया ,

उस की शर्त सदा चुप रहना ,

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बहुत कह लिया अब क्या कहना ...............

Thursday, February 5, 2009

फ़साना

आना हो तेरे पास तो आऊँ कैसे ,
पाना हो तेरा दीदार तो पाऊँ कैसे ।
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कुछ इस कदर हुआ हूँ मैं मजबूर ,
हो गया हूँ ख़ुद अपनी जिंदगी से दूर ।
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बहुत आती है याद वो तेरी हसीन मुस्कराहट,
प्यार करने को आते वो तेरे क़दमों की आहट।
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वो आ के पास तेरा धीरे से बैठ जाना ,
कुछ मेरी सुनना कुछ अपनी सुनाना ।
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न भूल पाया हूँ और ना ही भुला पाऊँगा ,
उन बीते हुए पलों को जो बन गए हैं फ़साना ।
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Tuesday, February 3, 2009

फलसफा

जो किसी का बुरा नही होता ,
शख्स ऐसा भला नही होता ।
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दोस्तों से शिकायतें होंगी ,
दुश्मनों से गिला नही होता ।
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हर परिंदा स्वयं बनाता है ,
अर्श पे रास्ता नही होता ।
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इश्क के कायदे नही होते ,
दर्द का फलसफा नही होता ।
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फितरतन गलतियाँ करेगा वो ,
आदमी देवता नही होता ।
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ख़त लिखोगे हमें कहाँ आख़िर ,
जोगियों का पता नही होता।
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तेरा जाना

दिल में तेरा ख्याल बसाए हुए हैं हम ,
सीने में एक चोट सी खाए हुए हैं हम ।
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शिकवा करें जमीन से या आसमान से,
किससे कहें की तेरे सताए हुए हैं हम ।
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बहुत प्यारी थी तेरी हर एक अदा हमारे लिए ,
पर अफ़सोस तुझे जी भर के ना देख पाए हम ।
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चाहा तो बहुत की तुझे खुशी से विदा करें,
पर बहना आंखों से आंसुओं का न रोक पाए हम ।
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जाना तेरा ग़मों की हद थी हमारे लिए,
पर तेरी खुशी के लिए मुस्कुराते रहे हैं हम ।
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तुझको गए हुए भी बहुत दिन गुजर गए ,
अब तक तुझे सीने से लगाये हुए हैं हम ।
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दिल में तेरा ख्याल बसाये हुए हैं हम ..........