बीते जो चन्द रोज़ मुझे होश संभाले ,
पीने पड़े मुझे जाने कितने जहर के प्याले ।
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सीखा ही था जब मैंने गिर - गिर के संभलना,
वो पाई ठोकरें की हुआ मुश्किल मेरा चलना ।
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था सामने एक बच्चा जो कुछ खेल रहा था ,
उस उम्र में भी मैं बड़े दुःख झेल रहा था ।
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बीता है बचपन मेरा अब आई है जवानी ,
सोंचता हूँ की होगी कब ये ख़त्म कहानी ।
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हूँ आज परेशान पर ये आस न छोड़ी ,
वो देगा मुझे जरूर खुशी चाहे दे थोडी ।
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Friday, March 20, 2009
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