Monday, March 23, 2009

परछाइयां

वह अंधेरे से लिपट कर रात भर रोता रहा ,
बेरहम सूरज न जाने किस जगह सोता रहा ।
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यह न समझा साथ उसका छोड़ देंगी एक दिन ,
वह सुबह से शाम तक परछाइयां ढोता रहा ।
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ये बुझे तारे बगावत कर नही सकते कभी ,
सत्य है होगा वही जो आज तक होता रहा ।
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एक उल्का सी ह्रदय में रह गई है रोशनी ,
बस उसी सुख की लहर में ख़ुद बा ख़ुद खोता रहा ।
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आइना भी कह न पाया रोक ले आंसू "अभी "
वह अभागा मोतियों को धूल में बोता रहा ।
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