Saturday, August 22, 2009

तजुर्बा

मै उठूं तो रंग लायें चर्चाओ के सिलसिले,
लोग इतना कहे आदमी अच्छा न था !
लोग इस अंदाज में देते है दुनिया कि मिसाल,
मै तो जैसे तजुरबो के दौर से गुजरा न था !

Sunday, June 28, 2009

पिता

रोटी है , कपड़ा है , मकान है , पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है ।
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं , पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं ॥
अपने पापा को बेटी (दिव्यांशी)की तरफ़ से ......

Thursday, May 28, 2009

रिश्ता

ज्योति का जो दीप से ,
मोती का जो सीप से ,
वही रिश्ता , मेरा , तुम से !
प्रणय का जो मीत से ,
स्वरों का जो गीत से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !

गुलाब का जो इत्र से ,
तूलिका का जो चित्र से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
सागर का जो नैय्या से ,
पीपल का जो छैय्याँ से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !

पुष्प का जो पराग से ,
कुमकुम का जो सुहाग से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !

नेह का जो नयन से , डाह का जो जलन से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
दीनता का शरण से ,
काल का जो मरण से ,
वही रिश्ता मेरा तुमसे......

Thursday, May 7, 2009

बस ऐसे ही

दिल लगाने से पहले उसने मुझे रोका ना था ।
मेरा प्यार था सच्चा कोई धोखा न था ।
एक लम्हें में वो हमसे रिश्ता तोड़ लेंगे ।
ख्वाब में भी हमने कभी ये सोंचा न था ।
भुला दिया उसने एक पल में मुझे ,
जिसकी याद में मैं रात भर सोता न था ।
पलकों की नमी अब जाती ही नही ,
सब कहते हैं पहले तो मैं कभी रोता न था ।
तौलते हैं दौलत से हर रिश्ते को आज ,
पर पहले तो ऐसा कभी होता न था ।
गैरों के गम में भी हुआ मैं शरीक ,
पर मेरे अश्कों को तो अपनों ने भी पोछा न था ।
लोगों ने क्योँ उजाड़ दिया चमन मेरा ,
मैंने किसी के आँगन का सुमन नोचा न था ॥

Thursday, April 16, 2009

इन्सान और जिंदगी

चलते - चलते थक गया , एक पल को ही रुक जाऊँ मैं,
ना रास्ता न मंजिलें , जाऊं तो किधर जाऊं मैं ।
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हर रास्ता है कह रहा, की आ मेरे तू साथ चल,
हैं नये सफर नई मंजिलें, तू दिल ले नई आस चल।
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गर यूँ ही तू थकता रहा, या ऐसे रुकता ही गया,
तो एक दिन इस भीड़ में, तू खो के ही रह जाएगा ।
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गर हो न मंजिल रास्ते , तो भी कोई तू गम न कर ,
तू ख़ुद बना ले रास्ते , और ख़ुद ही मंजिल भी बना ।
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ना सोंच की हूँ थक गया , ना सोंच की रुक जाऊं मैं ,
ये सोंच की चलता रहूँ , कोई तो मंजिल पाऊँ मैं ।
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Tuesday, April 7, 2009

बेवफा

देख डसती है मुझे फ़िर आज ये तनहाइयाँ ,
हो चुकी है आज तक मेरी बहुत रुस्वाइयां ।
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साथ तेरा छोड़ा है कि जा तुझे खुशियाँ मिलें ,
दूर ही मुझसे सही पर तुझको नई दुनिया मिलें ।
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मेरी इस दुनिया में सिवा विरानगी के कुछ नही ,
तेरी दुनिया में कहीं कुछ फूल खुशियों के खिले ।
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बेवफा समझे मुझे तू यार इसका गम नही ,
तेरी खुशियाँ ऐ सनम मेरे लिए कुछ कम नहीं ॥
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Saturday, April 4, 2009

उसका यूं ही चले जाना किसी मौत से कम नहीं था

ये रचना प्रशांत जी की है मुझे बहुत पसंद आई इस लिए मैंने इसे अपने पास अपनी पसंद मैं संरछित कर लिया .....

वो कब इस जीवन में आयी और कब चली गई कुछ पता ही नहीं चला॥ ऐसा लगता है जैसे जीवन के पांच साल यूं ही हवा में उड़ गये.. जीवन के सबसे खुशनुमा पांच साल.. उसकी कमी आज भी खलती है.. मन उदास भी होता है.. उसके वापस आने की कल्पना भी करता हूं.. मगर उसे पाने की कामना नहीं करता हूं.. उसके साथ जीवन के कयी खूबसूरत रंग देखे थे.. किसी के प्यार में आना क्या होता है यह भी उसका साथ पाकर ही जाना था.. उस प्यार का पागलपन.. उस प्यार की गहराई.. उस प्यार का अंधापन.. उस प्यार का दर्द.. वहीं उसके यूं ही चले जाने के बाद ही यह भी जाना की जिसे अंतर्मन से आप चाहते हैं और उसके बिना एक पल भी गुजारने का ख्याल भी डरा जाता हो, उसके अचानक यूं ही चले जाना.. बिना कुछ कहे.. बिना कोई कारण बताये.. शायद किसी अपने की मौत भी तो यूं ही होती है.. कहने को कई बातें होती है.. जिन बातों पर बहस होती थी उन्ही बातों को फिर से सुनने के लिये कान तरस जाते हैं.. अपनी भूल के लिये आप माफी मांगना चाहते हैं.. मगर कुछ कर नहीं सकते.. बस एक छटपटाहट अंदर तक रह जाती है जो अनगिनत रातें आपको पागलों कि तरह जगाती है.. तुम्हारे जाने से दुनिया को एक अलग नजरीये से भी देखा.. कई बुराईयां जिनसे दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था, उन्हें भी अपना लिया.. मगर शायद पहले से अच्छा इंसान हो गया.. लेकिन उससे क्या तुम्हारी कमी पूरी हो गई? मुझे पता है कि उत्तर तुम नहीं दोगी.. यहां जो नहीं हो.. मगर क्या यहां होने पर भी उत्तर देती? नहीं.. उत्तर हम दोनों को ही पता है.. नहीं.. क्यों चली गई तुम यह सवाल आज भी अंदर तक मुझे खाता है.. उस बेचैनी को धुंवे तले छिपाने की नाकाम कोशिशें भी करता हूं.. अक्सर कईयों से यह सुना है कि जब उदास हो तो उन पुरानी यादों को याद करना चाहिये जब हम बेवजह खुश हुआ करते थे.. मगर मैं किन यादों को याद करूं? सभी बेवजह की खुशियां भी तो तुमसे ही थी, जिन्हें तुम साथ ले गई.. हां! शायद दुनिया के लिये तुम हो इसी दुनिया में कहीं, मगर मेरे लिये तो तुम्हारा यूं ही चले जाना किसी मौत से कम नहीं है..