क्योँ बना है भार जीवन - क्यों बना है भार जीवन
जिन्हें चाहा था मिले वो,
कामना के उपवनों में,
फूल चाहे थे खिले वो,
तृप्ति बनकर प्रेयसी भी,
आ गई जब अंक में,
तब लगा क्यों स्वप्न बंधन,
क्यों बना फ़िर भार जीवन,
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चेतना तो चंचला है,
खोजती हर मोड़ पर सुख,
भोग की जो मेखला है,
नित्य देती है मुझे दुःख,
स्वप्न मेरे टूटते क्यों,
सुन तुम्हारा प्रणय गुंजन,
क्यों बना फ़िर भार जीवन,
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दिव्यता का रूप ले,
वासनाएं पास मेरे,
है सुनाती मधुर स्वर,
देख लो सुंदर सवेरा,
फ़िर ठगा सा क्यों खड़ा हूँ,
रात्रि से मैं क्यों डरा हूँ,
स्वर्ण मंडित आसनों से,
खिन्न है क्यों आज ये मन,
क्यों बना है भार जीवन,
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स्वप्न तो तुमने दिए सब,
स्वप्न भी पूरे किए सब,
फ़िर तुमने विस्मृत किया क्यों,
सत्य जो सन्मुख खड़ा था,
देखने से हूँ डरा क्यों,
दिव्यता क्यों भार बनकर,
छल रहीं हैं आज जीवन,
क्यों बना है भार जीवन,
क्यों बना है भार जीवन ......................................................
............................मेरी अपनी रचना
Wednesday, January 21, 2009
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सुन्दर अभिव्यक्ति ! निराश न हों !
ReplyDelete( कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें )