गुजरे लम्हों को मैं अक्सर ढूँढता मिल जाऊंगा ,
जिस्म से भी मैं तुम्हें होकर जुदा मिल जाऊंगा ।
........................................................................
दूर कितना भी रहो खोलोगे जब भी आँख तुम ,
मैं सिरहाने पर तुम्हें जागता मिल जाऊंगा ।
........................................................................
घर के बाहर जब कदम अपना रखोगे एक भी ,
बन के मैं तुम्हें तुम्हारा रास्ता मिल जाऊंगा ।
........................................................................
मुझपे मौसम कोई भी गुजरे जरा भी डर नही ,
खुश्क टहनी पर भी तुमको मैं हरा मिल जाऊंगा ।
........................................................................
तुम ख्यालों में सही आवाज दे कर देखना ,
घर के बाहर मैं तुम्हें आता हुआ मिल जाऊंगा ।
.........................................................................
गर तस्सवुर भी मेरे एक शेर का तुम ने किया ,
मैं सुबह घर की दीवारों पे लिखा मिल जाऊंगा ।
.........................................................................
जिस्म से भी मैं तुम्हें होकर जुदा मिल जाऊंगा ........
Thursday, January 29, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अब तक की आपकी रचनाओं में सबसे कमाल है यह गज़ल ! बधाई !
ReplyDeleteआप का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDelete