Thursday, January 29, 2009

ख्याल

गुजरे लम्हों को मैं अक्सर ढूँढता मिल जाऊंगा ,
जिस्म से भी मैं तुम्हें होकर जुदा मिल जाऊंगा ।
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दूर कितना भी रहो खोलोगे जब भी आँख तुम ,
मैं सिरहाने पर तुम्हें जागता मिल जाऊंगा ।
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घर के बाहर जब कदम अपना रखोगे एक भी ,
बन के मैं तुम्हें तुम्हारा रास्ता मिल जाऊंगा ।
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मुझपे मौसम कोई भी गुजरे जरा भी डर नही ,
खुश्क टहनी पर भी तुमको मैं हरा मिल जाऊंगा ।
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तुम ख्यालों में सही आवाज दे कर देखना ,
घर के बाहर मैं तुम्हें आता हुआ मिल जाऊंगा ।
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गर तस्सवुर भी मेरे एक शेर का तुम ने किया ,
मैं सुबह घर की दीवारों पे लिखा मिल जाऊंगा ।
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जिस्म से भी मैं तुम्हें होकर जुदा मिल जाऊंगा ........

2 comments:

  1. अब तक की आपकी रचनाओं में सबसे कमाल है यह गज़ल ! बधाई !

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  2. आप का बहुत बहुत शुक्रिया

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