Sunday, January 18, 2009
फ़ैसला
क्या हम को ये हक है की हम किसी की जिंदगी का कोई फ़ैसला कर सकें कौन जियेगा कौन मरेगा ये फ़ैसला अगर सिर्फ़ भगवान को करने दिया जाए तो बेहतर होगा। इन्सान का भगवान बनना अच्छा नही। अपने अंहकार में हम ख़ुद को खुदा समझने लगे वाह। हम जो कर रहे वही सही है ऐसा सोंच कर अहंकारी जो भी करता है उससे वो बहुत कुछ खो देता है पर उसके आँखों पर पड़ा परदा उसे कुछ भी देखने ही नही देता। परदा हटने के बाद जब वो ख़ुद को अकेला पाता है तो रोने के अलावा वो कुछ भी नही कर पता। बीबी बच्चे भाई बहेन माँ बाप सब एक एक कर दूर हो गए और हम बहुत खुश हैं की हम ने दुनिया जीत ली। धर्म की राह में चलने वाले और दुनिया में सब के दुःख और तकलीफ समझने वाले को ही दुनिया प्यार और इज्जत देती है नही तो बहुत शक्तिशाली होने पर भी आप को मिटा दिया जाएगा क्यों की हर पल का हिसाब हो रहा है और क़यामत के रोज खुदा आप से भी मुखातिब होगा तब आप के पास ऐसा कुछ भी नही होगा जो आप को बचा सके । और सजा मिलेगी तो आप में उसे बर्दाश्त करने की छमता नही होगी । पूरी दुनिया को जीत कर भी सिकंदर खाली हाँथ ही गया फ़िर कैसा पैसा कैसा समाज ये सब फालतू बातें हैं । अपनों से बनता है इन्सान और अच्छे कर्मों से बनता है एक इन्सान भगवान अब ये आपका फ़ैसला है आप क्या बनना चाहते हैं । अगर आप कहते हैं की भगवान बनना है तो एक अच्छा इन्सान तो बनना ही पड़ेगा ।
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अच्छे इंसान ही बन सकें तो काफी है !
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