बहुत कह लिया अब क्या कहना ,
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शब्दों पर विश्वास खो गया ,
अर्थ खोखले बने पड़े हैं ,
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कही अनकही ख़त्म हो चुकी ,
अपने से हम बहुत लड़े हैं,
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नहीं शिकायत कोई उन से ,
हमने सीख लिया है सहना ,
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आते - जाते छड़ ने रुक कर ,
पूछी बहुत पुरानी बातें ,
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चुप चुप रोते बीती हैं ,
अपनी तो अधियारी रातें ,
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जो कुछ अपने हिस्से आया ,
उस की शर्त सदा चुप रहना ,
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बहुत कह लिया अब क्या कहना ...............
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