Friday, February 6, 2009

अब क्या कहना

बहुत कह लिया अब क्या कहना ,

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शब्दों पर विश्वास खो गया ,

अर्थ खोखले बने पड़े हैं ,

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कही अनकही ख़त्म हो चुकी ,

अपने से हम बहुत लड़े हैं,

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नहीं शिकायत कोई उन से ,

हमने सीख लिया है सहना ,

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आते - जाते छड़ ने रुक कर ,

पूछी बहुत पुरानी बातें ,

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चुप चुप रोते बीती हैं ,

अपनी तो अधियारी रातें ,

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जो कुछ अपने हिस्से आया ,

उस की शर्त सदा चुप रहना ,

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बहुत कह लिया अब क्या कहना ...............

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