चला जा रहा था तन्हा
जिंदगी की राहों में,
..........................................
एक कली ने छेड़ा मुझे
ले लिया अपनी बाँहों में,
..........................................
ले के बाँहों में मुझे
हौले से वो मुस्करायी ,
..........................................
देख कर उसको लगा ऐसा
जैसे पतझड़ में बहार आई,
..........................................
थी उसके प्यार में
कुछ ऐसी अदा,
..........................................
हो गया मेरा सब कुछ
ख़ुद मुझ से ही जुदा,
..........................................
गया था भूल मैं की
आती नही पतझड़ में बहार,
..........................................
चली गई वो मुझसे दूर
बिता के साथ दिन दो चार ,
..........................................
राहों की वो तन्हाई
फ़िर एक बार मैंने पाई,
.........................................
और कुछ भी करना जिंदगी में
पर कभी किसी से दिल न लगाना भाई ......
दिल न लगाना भाई ...............................
.........................................
Sunday, February 8, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
ReplyDeleteतुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं