ये क्यों इतने इल्जाम पाए हैं हमने ,
की वादे वफ़ा के निभाए हैं हमने ।
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खिलाये थे गुल कि खुशबू मिलेगी,
मगर जख्म काटों से पाए हैं हमने ।
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बचाया बहुत था ग़मों से ये दामन ,
पर खुशी में भी अश्क बहाए हैं हमने ।
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हर तरफ़ हैं वही डराते वीभत्स चेहरे ,
ना जाने किस किस से नजरें चुराई हैं हमने ।
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की आए जो वक्त लडूं दूसरों से ,
तो अपनों से ही मात खाई हैं हमने ।
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ना जाने क्यों माफ़ कर रहा हूँ उनको ,
जिनसे सदा गम ही पाए हैं हमने ।
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Friday, February 20, 2009
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