सच ये है बेकार हमें ग़म होता है जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं जब तेरी यादों का मौसम होता है
Friday, February 13, 2009
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