Friday, February 6, 2009

सजदा

धुंआ बना के फिजाओं में उड़ा दिया मुझको ,
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको ,
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खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए ,
सवाल ये है की किताबों ने क्या दिया मुझको ,
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सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर ,
हसीन सहर सा किसने सजा दिया मुझको ,
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मैं एक जर्रा बुलंदी को छूने निकला था ,
हवा ने थम के जमीं पर गिरा दिया मुझको ....
......................... धुआं बना के .....................

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