Tuesday, November 17, 2009
प्यार का सच
जाता है। और जितना प्रेम कम होता है, उतना सेक्स ज्यादा हो जाता है। जिस आदमी में जितना ज्यादा प्रेम होगा, उतना
उसमें सेक्स विलीन हो जाएगा। अगर आप परिपूर्ण प्रेम से भर जाएंगे, आपके भीतर सेक्स जैसी कोई चीज नहीं रह जाएगी।
और अगर आपके भीतर कोई प्रेम नहीं है, तो आपके भीतर सब सेक्स है।
सेक्स की जो शक्ति है, उसका परिवर्तन, उसका उदात्तीकरण प्रेम में होता है। इसलिए अगर सेक्स से मुक्त होना है, तो
सेक्स को दबाने से कुछ भी न होगा। उसे दबाकर कोई पागल हो सकता है। और दुनिया में जितने पागल हैं, उसमें से सौ में
से नब्बे संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने सेक्स की शक्ति को दबाने की कोशिश की है। और यह भी शायद आपको पता होगा
कि सभ्यता जितनी विकसित होती है, उतने पागल बढ़ते जाते हैं, क्योंकि सभ्यता सबसे ज्यादा दमन सेक्स का करवाती है।
सभ्यता सबसे ज्यादा दमन, सप्रेशन सेक्स का करवाती है! और इसलिए हर आदमी अपने सेक्स को दबाता है, सिकोड़ता
है। वह दबा हुआ सेक्स विक्षिप्तता पैदा करता है, अनेक बीमारियां पैदा करता है, अनेक मानसिक रोग पैदा करता है।
सेक्स को दबाने की जो भी चेष्टा है, वह पागलपन है। ढेर साधु पागल होते पाए जाते हैं। उसका कोई कारण नहीं है सिवाय
इसके कि वे सेक्स को दबाने में लगे हुए हैं। और उनको पता नहीं है, सेक्स को दबाया नहीं जाता। प्रेम के द्वार खोलें, तो
जो शक्ति सेक्स के मार्ग से बहती थी, वह प्रेम के प्रकाश में परिणत हो जाएगी। जो सेक्स की लपटें मालूम होती थीं, वे प्रेम
का प्रकाश बन जाएंगी। प्रेम को विस्तीर्ण करें। प्रेम सेक्स का क्रिएटिव उपयोग है, उसका सृजनात्मक उपयोग है। जीवन को
प्रेम से भरें।
आप कहेंगे, हम सब प्रेम करते हैं। मैं आपसे कहूं, आप शायद ही प्रेम करते हों; आप प्रेम चाहते होंगे। और इन दोनों में
जमीन-आसमान का फर्क है। प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं। हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर
जाते हैं। क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है। प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है। प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है।
छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं। मां उनको प्रेम देती है। फिर वे बड़े होते हैं। वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको
प्रेम देता है। फिर वे और बड़े होते हैं। अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं। अगर वे पत्नियां हुईं, तो वे
अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं। और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है। क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम
केवल किया जाता है। चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा। और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे
चाहेगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे। दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है,
उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है।
इसे थोड़ा विचार करके देखना आप अपने मन के भीतर। आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा। चाहते हैं, कोई प्रेम करे।
और जब कोई प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है। लेकिन आपको पता नहीं है, वह दूसरा भी प्रेम करना केवल वैसे ही है
जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है। आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है। आटा वह मछलियों को
फांसने के लिए फेंक रहा है। वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है, वह मछलियों को चाहता है, इसलिए आटा फेंक रहा है।
इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं, वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं। थोड़ी देर वे
आटा खिलाएंगे, फिर...।
और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा, वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा। वह भी थोड़ा
प्रेम प्रदर्शित करेगा। थोड़ी देर बाद पता चलेगा, वे दोनों भिखमंगे हैं और भूल में थे; एक-दूसरे को बादशाह समझ रहे थे!
और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी।
दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है, क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं, देना कोई भी जानता नहीं है। सारे झगड़े के
पीछे बुनियादी कारण इतना ही है। और कितना ही परिवर्तन हो, किसी तरह के विवाह हों, किसी तरह की समाज व्यवस्था
बने, जब तक जो मैं कह रहा हूं अगर नहीं होगा, तो दुनिया में स्त्री और पुरुषों के संबंध अच्छे नहीं हो सकते। उनके अच्छे
होने का एक ही रास्ता है कि हम यह समझें कि प्रेम दिया जाता है, प्रेम मांगा नहीं जाता, सिर्फ दिया जाता है। जो मिलता
है, वह प्रसाद है, वह उसका मूल्य नहीं है। प्रेम दिया जाता है। जो मिलता है, वह उसका प्रसाद है, वह उसका मूल्य
नहीं है। नहीं मिलेगा, तो भी देने वाले का आनंद होगा कि उसने दिया।
अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम देना शुरू कर दें और मांगना बंद कर दें, तो जीवन स्वर्ग बन सकता है। और जितना वे
प्रेम देंगे और मांगना बंद कर देंगे, उतना ही--अदभुत जगत की व्यवस्था है--उन्हें प्रेम मिलेगा। और उतना ही वे अदभुत
अनुभव करेंगे--जितना वे प्रेम देंगे, उतना ही सेक्स उनका विलीन होता चला जाएगा।
Thursday, November 12, 2009
झूठी मुस्कराहट
व्यक्ति मुस्कराहटों के बिना नहीं जी सकता, इसलिये उसे ढोंग करना पड़ता है, लेकिन एक झूठी मुस्कराहट बहुत पीड़ा दे जाती है… यह हमें प्रसन्न नहीं करती, यह सिर्फ हमें यह स्मरण दिलाती है कि हम कितने दुखी हैं।
Tuesday, October 13, 2009
स्वार्थी बनो और देखो
हमें दूसरों को प्रेम करने के बारे में तो मालूम है, परंतु स्वयं को? क्या वह दूसरे का काम है? ओशो का स्पष्ट उत्तर है,'नहीं'; प्रेम तुमसे ही शुरू होता है और स्वयं से प्रेम करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि तुम कौन हो।
स्वार्थ शब्द का अर्थ समझते हो? शब्द बड़ा प्यारा है, लेकिन गलत हाथों में पड़ गया है। स्वार्थ का अर्थ होता है--आत्मार्थ। अपना सुख, स्व का अर्थ। तो मैं तो स्वार्थ शब्द में कोई बुराई नहीं देखता। मैं तो बिलकुल पक्ष में हूं। मैं तो कहता हूं, धर्म का अर्थ ही स्वार्थ है। क्योंकि धर्म का अर्थ स्वभाव है।
और एक बात खयाल रखना कि जिसने स्वार्थ साध लिया, उससे परार्थ सधता है। जिससे स्वार्थ ही न सधा, उससे परार्थ कैसे सधेगा! जो अपना न हुआ, वह किसी और का कैसे होगा! जो अपने को सुख न दे सका, वह किसको सुख दे सकेगा! इसके पहले कि तुम दूसरों को प्रेम करो, मैं तुम्हें कहता हूं, अपने को प्रेम करो। इसके पहले कि तुम दूसरों के जीवन में सुख की कोई हवा ला सको, कम से कम अपने जीवन में तो हवा ले आओ। इसके पहले कि दूसरे के अंधेरे जीवन में प्रकाश की किरण उतार सको, कम से कम अपने अंधेरे में तो प्रकाश को निमंत्रित करो। इसको स्वार्थ कहते हो! चलो स्वार्थ ही सही, शब्द से क्या फर्क पड़ता है! लेकिन यह स्वार्थ बिलकुल जरूरी है। यह दुनिया ज्यादा सुखी हो जाए, अगर लोग ठीक अर्थों में स्वार्थी हो जाएं।
और जिस आदमी ने अपना सुख नहीं जाना, वह जब दूसरे को सुख देने की कोशिश में लग जाता है तो बड़े खतरे होते हैं। उसे पहले तो पता नहीं कि सुख क्या है? वह जबर्दस्ती दूसरे पर सुख थोपने लगता है, जिस सुख का उसे भी अनुभव नहीं हुआ। तो करेगा क्या? वही करेगा जो उसके जीवन में हुआ है।
समझो कि तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें एक तरह की शिक्षा दी--तुम मुसलमान-घर में पैदा हुए, कि हिंदू-घर में पैदा हुए, कि जैन-घर में, तुम्हारे मां-बाप ने जल्दी से तुम्हें जैन, हिंदू या मुसलमान बना दिया। उन्होंने यह सोचा ही नहीं कि उनके जैन होने से, हिंदू होने से उन्हें सुख मिला है? नहीं, वे एकदम तुम्हें सुख देने में लग गए। तुम्हें हिंदू बना दिया, मुसलमान बना दिया। तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें धन की दौड़ में लगा दिया। उन्होंने यह सोचा भी नहीं एक भी बार कि हम धन की दौड़ में जीवनभर दौड़े, हमें धन मिला है? धन से सुख मिला है? उन्होंने जो किया था, वही तुम्हें सिखा दिया। उनकी भी मजबूरी है, और कुछ सिखाएंगे भी क्या? जो हम सीखे होते हैं उसी की शिक्षा दे सकते हैं। उन्होंने अपनी सारी बीमारियां तुम्हें सौंप दीं। तुम्हारी धरोहर बस इतनी ही है। उनके मां-बाप उन्हें सौंप गए थे बीमारियां, वे तुम्हें सौंप गए, तुम अपने बच्चों को सौंप जाओगे।
कुछ स्वार्थ कर लो, कुछ सुख पा लो, ताकि उतना तुम अपने बच्चों को दे सको, उतना तुम अपने पड़ोसियों को दे सको। यहां हर आदमी दूसरे को सुखी करने में लगा है, और यहां कोई सुखी है नहीं। जो स्वाद तुम्हें नहीं मिला, उस स्वाद को तुम दूसरे को कैसे दे सकोगे? असंभव है।
मैं तो बिलकुल स्वार्थ के पक्ष में हूं। मैं तो कहता हूं, मजहब मतलब की बात है। इससे बड़ा कोई मतलब नहीं है। धर्म यानी स्वार्थ। लेकिन बड़ी अपूर्व घटना घटती है, स्वार्थ की ही बुनियाद पर परार्थ का मंदिर खड़ा होता है।
तुम जब धीरे-धीरे अपने जीवन में शांति, सुख, आनंद की झलकें पाने लगते हो, तो अनायास ही तुम्हारा जीवन दूसरों के लिए उपदेश हो जाता है। तुम्हारे जीवन से दूसरों को इंगित और इशारे मिलने लगते हैं। तुम अपने बच्चों को वही सिखाओगे जिससे तुमने शांति जानी। तुम फिर प्रतिस्पर्धा न सिखाओगे, प्रतियोगिता न सिखाओगे, संघर्ष-वैमनस्य न सिखाओगे। तुम उनके मन में जहर न डालोगे।
इस दुनिया में अगर लोग थोड़े स्वार्थी हो जाएं तो बड़ा परार्थ हो जाए।
अब तुम कहते हो कि 'क्या ऐसी स्थिति में ध्यान आदि करना निपट स्वार्थ नहीं है?'
निपट स्वार्थ है। लेकिन स्वार्थ में कहीं भी कुछ बुरा नहीं है। अभी तक तुमने जिसको स्वार्थ समझा है, उसमें स्वार्थ भी नहीं है। तुम कहते हो, धन कमाएंगे, इसमें स्वार्थ है; पद पा लेंगे, इसमें स्वार्थ है; बड़ा भवन बनाएंगे, इसमें स्वार्थ है। मैं तुमसे कहता हूं, इसमें स्वार्थ कुछ भी नहीं है। मकान बन जाएगा, पद भी मिल जाएगा, धन भी कमा लिया जाएगा--अगर पागल हुए तो सब हो जाएगा जो तुम करना चाहते हो--मगर स्वार्थ हल नहीं होगा। क्योंकि सुख न मिलेगा। और स्वयं का मिलन भी नहीं होगा। और न जीवन में कोई अर्थवत्ता आएगी। तुम्हारा जीवन व्यर्थ ही रहेगा, कोरा, जिसमें कभी कोई वर्षा नहीं हुई। जहां कभी कोई अंकुर नहीं फूटे, कभी कोई हरियाली नहीं और कभी कोई फूल नहीं आए। तुम्हारी वीणा ऐसी ही पड़ी रह जाएगी, जिसमें कभी किसी ने तार नहीं छेड़े। कहां का अर्थ और कहां का स्व!
तुमने जिसको स्वार्थ समझा है, उसमें स्वार्थ नहीं है, सिर्फ मूढ़ता है। और जिसको तुम स्वार्थ कहकर कहते हो कि कैसे मैं करूं? मैं तुमसे कहता हूं, उसमें स्वार्थ है और परम समझदारी का कदम भी है। तुम यह स्वार्थ करो।
इस बात को तुम जीवन के गणित का बहुत आधारभूत नियम मान लो कि अगर तुम चाहते हो दुनिया भली हो, तो अपने से शुरू कर दो--तुम भले हो जाओ।
फिर तुम कहते हो, 'परमात्मा मुझे यदि मिले भी, तो उससे अपनी शांति मांगने के बजाय मैं उन लोगों के लिए दंड ही मांगना पसंद करूंगा जिनके कारण संसार में शोषण है, दुख है और अन्याय है।'
क्या तुम सोचते हो तुम उन लोगों में सम्मिलित नहीं हो? क्या तुम सोचते हो वे लोग कोई और लोग हैं? तुम उन लोगों से भी तो पूछो कभी! वे भी यही कहते हुए पाए जाएंगे कि दूसरों के कारण। कौन है दूसरा यहां? किसकी बात कर रहे हो? किसको दंड दिलवाओगे? तुमने शोषण नहीं किया है? तुमने दूसरे को नहीं सताया है? तुम दूसरे की छाती पर नहीं बैठ गए हो, मालिक नहीं बन गए हो? तुमने दूसरों को नहीं दबाया है? तुमने वही सब किया है, मात्रा में भले भेद हों। हो सकता है तुम्हारे शोषण की प्रक्रिया बहुत छोटे दायरे में चलती हो, लेकिन चलती है। तुम जी न सकोगे। तुम अपने से नीचे के आदमी को उसी तरह सता रहे हो जिस तरह तुम्हारे ऊपर का आदमी तुम्हें सता रहा है। यह सारा जाल जीवन का शोषण का जाल है, इसमें तुम एकदम बाहर नहीं हो, दंड किसके लिए मांगोगे?
और जरा खयाल करना, दंड भी तो दुख ही देगा दूसरों को! तो तुम दूसरों को दुखी ही देखना चाहते हो! परमात्मा भी मिल जाएगा तो भी तुम मांगोगे दंड ही! दूसरों को दुख देने का उपाय ही! तुम अपनी शांति तक छोड़ने को तैयार हो!
Saturday, August 29, 2009
Ab Ke Hum Bichhray To Shayad
Ab Ke Hum Bichhray To Shayad Kabhi Khwabon Mein Milen
Jis Tarah Sookhay Hue Phool Kitabon Mein Milen
Dhoond Ujray Hue Logon Mein Wafa K Moti
Ye Khazanay Tujhe Mumkin Hai Kharabon Mein Milen
Gham-E-Duniya Bhi Gham-E-Yaar Mein Shaamil Kar Lo
Nasha Barhta Hai Shar?ben Jo Shar?bon Mein Milen
Tu Khuda Hai Na Mera Ishq Farishton Jaisa
Dono Insaan Hain To Kyun Itnay Hijaabon Mein Milen
Aaj Hum Daar Pe Khenchay Gaye Jin Baaton Par
Kya Ajab, Kal Vo Zamaanay Ko Nisaabon Mein Milen
Ab Na Vo Main Hun, Na Tu Hai, Na Vo Maazi Hai Faraz
Jaise Do Shakhs Tamanna K Saraabon Mein Milen
Saturday, August 22, 2009
आज की दुनिया
लगा मुझको कहीं पर मैंने इसकी शक्ल है देखी ,
कि देखा ध्यान से उसको तो मेरी अक्ल चकराई ,
पड़ा जो राह में वो तो ख़ुद मैं ही हूँ भाई ,
न जाने कब कहा कैसे किधर को चल बसा था मैं ,
कई लोगों के बीच देखो आज आ के फंसा था मैं ,
कि मुझको देख कर सब लोग कुछ तो थे बोले ,
कई ने कुछ तो कई ने मेरे सारे राज थे खोले ,
कि मुझको देख कर एक यार बुक्के फाड़ के रोया ,
मैं समझा कि चलो ये ही मेरा एक यार है गोया ,
मगर वो था फरेबी दुष्ट और था महा पापी ,
वो बोला देख कर मुझको कि कुछ दिन बाद मर जाते ,
जो पैसे कल ही ले गए थे वो तो कुछ खर्च कर जाते ,
जो भी कर्जा लिया था तूने वो तुझको माफ़ करता हूँ ,
ये घड़ी , अंगूठी और चेन लेकर मैं हिसाब साफ़ करता हूँ ,
कि देख कर जेबों के पैसों को मेरे एक यार ये बोले ,
कि हाय छोड़ कर वादा अधूरा मर गया भोले ,
कि इन पैसों से आज तुझे मेरा वादा निभाना था ,
पहले सनीमा फ़िर कलब फ़िर बार जाना था ,
कि चल तेरी खातिर मैं तेरा वादा निभाऊंगा ,
कि तेरे नाम की दारु भी मैं ख़ुद ही चढाऊंगा ,
कि ये कह कर उन्होंने जेबों के सारे पैसे थे मारे ,
हम तो बस ये ही सोंचा किए क्या येही दोस्त थे सारे ,
"अभि" देखो जहाँ में आज तो बस ये ही ये अब है ,
नही इन्सान की कीमत यहाँ तो लाश ही सब है ।
तजुर्बा
लोग इतना कहे आदमी अच्छा न था !
लोग इस अंदाज में देते है दुनिया कि मिसाल,
मै तो जैसे तजुरबो के दौर से गुजरा न था !
Sunday, June 28, 2009
पिता
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं , पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं ॥
अपने पापा को बेटी (दिव्यांशी)की तरफ़ से ......
Thursday, May 28, 2009
रिश्ता
मोती का जो सीप से ,
वही रिश्ता , मेरा , तुम से !
प्रणय का जो मीत से ,
स्वरों का जो गीत से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
गुलाब का जो इत्र से ,
तूलिका का जो चित्र से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
सागर का जो नैय्या से ,
पीपल का जो छैय्याँ से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
पुष्प का जो पराग से ,
कुमकुम का जो सुहाग से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
नेह का जो नयन से , डाह का जो जलन से ,
वही रिश्ता मेरा , तुम से !
दीनता का शरण से ,
काल का जो मरण से ,
वही रिश्ता मेरा तुमसे......
Thursday, May 7, 2009
बस ऐसे ही
मेरा प्यार था सच्चा कोई धोखा न था ।
एक लम्हें में वो हमसे रिश्ता तोड़ लेंगे ।
ख्वाब में भी हमने कभी ये सोंचा न था ।
भुला दिया उसने एक पल में मुझे ,
जिसकी याद में मैं रात भर सोता न था ।
पलकों की नमी अब जाती ही नही ,
सब कहते हैं पहले तो मैं कभी रोता न था ।
तौलते हैं दौलत से हर रिश्ते को आज ,
पर पहले तो ऐसा कभी होता न था ।
गैरों के गम में भी हुआ मैं शरीक ,
पर मेरे अश्कों को तो अपनों ने भी पोछा न था ।
लोगों ने क्योँ उजाड़ दिया चमन मेरा ,
मैंने किसी के आँगन का सुमन नोचा न था ॥
Thursday, April 16, 2009
इन्सान और जिंदगी
ना रास्ता न मंजिलें , जाऊं तो किधर जाऊं मैं ।
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हर रास्ता है कह रहा, की आ मेरे तू साथ चल,
हैं नये सफर नई मंजिलें, तू दिल ले नई आस चल।
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गर यूँ ही तू थकता रहा, या ऐसे रुकता ही गया,
तो एक दिन इस भीड़ में, तू खो के ही रह जाएगा ।
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गर हो न मंजिल रास्ते , तो भी कोई तू गम न कर ,
तू ख़ुद बना ले रास्ते , और ख़ुद ही मंजिल भी बना ।
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ना सोंच की हूँ थक गया , ना सोंच की रुक जाऊं मैं ,
ये सोंच की चलता रहूँ , कोई तो मंजिल पाऊँ मैं ।
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Tuesday, April 7, 2009
बेवफा
हो चुकी है आज तक मेरी बहुत रुस्वाइयां ।
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साथ तेरा छोड़ा है कि जा तुझे खुशियाँ मिलें ,
दूर ही मुझसे सही पर तुझको नई दुनिया मिलें ।
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मेरी इस दुनिया में सिवा विरानगी के कुछ नही ,
तेरी दुनिया में कहीं कुछ फूल खुशियों के खिले ।
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बेवफा समझे मुझे तू यार इसका गम नही ,
तेरी खुशियाँ ऐ सनम मेरे लिए कुछ कम नहीं ॥
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Saturday, April 4, 2009
उसका यूं ही चले जाना किसी मौत से कम नहीं था
वो कब इस जीवन में आयी और कब चली गई कुछ पता ही नहीं चला॥ ऐसा लगता है जैसे जीवन के पांच साल यूं ही हवा में उड़ गये.. जीवन के सबसे खुशनुमा पांच साल.. उसकी कमी आज भी खलती है.. मन उदास भी होता है.. उसके वापस आने की कल्पना भी करता हूं.. मगर उसे पाने की कामना नहीं करता हूं.. उसके साथ जीवन के कयी खूबसूरत रंग देखे थे.. किसी के प्यार में आना क्या होता है यह भी उसका साथ पाकर ही जाना था.. उस प्यार का पागलपन.. उस प्यार की गहराई.. उस प्यार का अंधापन.. उस प्यार का दर्द.. वहीं उसके यूं ही चले जाने के बाद ही यह भी जाना की जिसे अंतर्मन से आप चाहते हैं और उसके बिना एक पल भी गुजारने का ख्याल भी डरा जाता हो, उसके अचानक यूं ही चले जाना.. बिना कुछ कहे.. बिना कोई कारण बताये.. शायद किसी अपने की मौत भी तो यूं ही होती है.. कहने को कई बातें होती है.. जिन बातों पर बहस होती थी उन्ही बातों को फिर से सुनने के लिये कान तरस जाते हैं.. अपनी भूल के लिये आप माफी मांगना चाहते हैं.. मगर कुछ कर नहीं सकते.. बस एक छटपटाहट अंदर तक रह जाती है जो अनगिनत रातें आपको पागलों कि तरह जगाती है.. तुम्हारे जाने से दुनिया को एक अलग नजरीये से भी देखा.. कई बुराईयां जिनसे दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था, उन्हें भी अपना लिया.. मगर शायद पहले से अच्छा इंसान हो गया.. लेकिन उससे क्या तुम्हारी कमी पूरी हो गई? मुझे पता है कि उत्तर तुम नहीं दोगी.. यहां जो नहीं हो.. मगर क्या यहां होने पर भी उत्तर देती? नहीं.. उत्तर हम दोनों को ही पता है.. नहीं.. क्यों चली गई तुम यह सवाल आज भी अंदर तक मुझे खाता है.. उस बेचैनी को धुंवे तले छिपाने की नाकाम कोशिशें भी करता हूं.. अक्सर कईयों से यह सुना है कि जब उदास हो तो उन पुरानी यादों को याद करना चाहिये जब हम बेवजह खुश हुआ करते थे.. मगर मैं किन यादों को याद करूं? सभी बेवजह की खुशियां भी तो तुमसे ही थी, जिन्हें तुम साथ ले गई.. हां! शायद दुनिया के लिये तुम हो इसी दुनिया में कहीं, मगर मेरे लिये तो तुम्हारा यूं ही चले जाना किसी मौत से कम नहीं है..
Monday, March 23, 2009
परछाइयां
बेरहम सूरज न जाने किस जगह सोता रहा ।
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यह न समझा साथ उसका छोड़ देंगी एक दिन ,
वह सुबह से शाम तक परछाइयां ढोता रहा ।
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ये बुझे तारे बगावत कर नही सकते कभी ,
सत्य है होगा वही जो आज तक होता रहा ।
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एक उल्का सी ह्रदय में रह गई है रोशनी ,
बस उसी सुख की लहर में ख़ुद बा ख़ुद खोता रहा ।
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आइना भी कह न पाया रोक ले आंसू "अभी "
वह अभागा मोतियों को धूल में बोता रहा ।
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Friday, March 20, 2009
आस
पीने पड़े मुझे जाने कितने जहर के प्याले ।
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सीखा ही था जब मैंने गिर - गिर के संभलना,
वो पाई ठोकरें की हुआ मुश्किल मेरा चलना ।
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था सामने एक बच्चा जो कुछ खेल रहा था ,
उस उम्र में भी मैं बड़े दुःख झेल रहा था ।
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बीता है बचपन मेरा अब आई है जवानी ,
सोंचता हूँ की होगी कब ये ख़त्म कहानी ।
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हूँ आज परेशान पर ये आस न छोड़ी ,
वो देगा मुझे जरूर खुशी चाहे दे थोडी ।
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Thursday, March 5, 2009
इल्तजा
मेरी परछाइयों से दूर , मुझे ले के कहीं चल ।
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चल दूर कहीं इतना , कि फ़िर लौट न पाऊं ,
न रास्ते हो ख़त्म , न मंजिल को मैं पाऊँ ।
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न हो वफ़ा कि चाह , न हो प्यार कि हसरत ,
चलता ही जा रहा हूँ , बस चलता ही मैं जाऊं ।
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ऐ जिंदगी सुन इल्तजा , ना साथ छोड़ देना ,
जब भी उठे नजर ,तुझे साथ में मैं पाऊँ ।
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Sunday, March 1, 2009
इंतजार
कर रहा हूँ मैं कब से तेरा इंतजार ,
आजा कि न आयेंगे ये दिन बार बार ।
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आजा के फिजा में फ़िर ये बहार ना आएगी ,
लाख तड़पेगी तू पर मेरी परछाई भी न पायेगी ।
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मैं अपनी सारी यादें अपने साथ ले जाऊंगा ,
यूँ करूंगा तन्हा कि फ़िर कभी न आऊंगा ।
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आजा कि इंतजार की इन्तहा हो गई है ,
यूँ लगे हर पल कि जिस्म से जान जुदा हो गई है ।
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Friday, February 27, 2009
पछतावा
कर के वफ़ा तुझसे - मैं पछता रहा हूँ ,
नही जीने की चाहत पर जिए जा रहा हूँ।
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क्यों तूने किया रुसवा - क्यों बीच राह छोड़ा,
जिंदगी के इस सफर में अकेले चल रहा हूँ ।
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छोड़ा जो हाथ तूने - न किसी ने हाथ पकड़ा ,
खुशियों की महफिलों में मैं तनहा ही रह रहा हूँ ।
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दुआ है ये खुदा से - न कभी तू चैन पाए ,
छोड़ के तेरी दुनिया मैं तो चला ही जा रहा हूँ।
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Saturday, February 21, 2009
क्या है पता
कहाँ घर तेरा , तेरा क्या है पता ।
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रोशनी है या कि है अँधेरा वहां ,
है खुशियाँ वहाँ , या फ़िर गम का जहाँ ।
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क्या वहां पर कहीं ऐसा संसार है ,
जहाँ पर सिर्फ़ प्यार ही प्यार है ।
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क्या वहां पर कहीं कुछ पराये भी हैं ,
या वहां पर सभी अपने साये ही हैं ।
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मुझसे सच सच बता , न तू करना दगा ,
वहां नफरत दिलों में है या है वफ़ा ।
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सच तो ये है कि छोड़ दूँ ये जहाँ ,
मिली नफरत वहां भी तो जाऊँगा कहाँ - जाऊंगा कहाँ .........
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Friday, February 20, 2009
मात
की वादे वफ़ा के निभाए हैं हमने ।
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खिलाये थे गुल कि खुशबू मिलेगी,
मगर जख्म काटों से पाए हैं हमने ।
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बचाया बहुत था ग़मों से ये दामन ,
पर खुशी में भी अश्क बहाए हैं हमने ।
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हर तरफ़ हैं वही डराते वीभत्स चेहरे ,
ना जाने किस किस से नजरें चुराई हैं हमने ।
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की आए जो वक्त लडूं दूसरों से ,
तो अपनों से ही मात खाई हैं हमने ।
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ना जाने क्यों माफ़ कर रहा हूँ उनको ,
जिनसे सदा गम ही पाए हैं हमने ।
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Wednesday, February 18, 2009
इंतजार
खो गई है मंजिलें आख़िर हम कहाँ जाते ।
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इंतजार में चन्द पलों के जिंदगी जाती रही ,
काश वो मुहब्बत भरे कुछ पल हमें मिल पाते ।
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कल हाँ कल यही सोंचते जिंदगी सिर्फ़ इंतजार बन गई ,
वो आएगी जरूर यही सोंचकर देखते रहे सबको आते जाते ।
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इंतजार में कल के आज के ये पल कट नही पाते ,
काश आज के इस सफर में तुम मेरे हमसफ़र बन जाते ।
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ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
नहीं खोजने जाता मरहम,होकर अपने प्रति अति निर्मम,उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
आह निकल मुख से जाती है,मानव की ही तो छाती है,लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
Saturday, February 14, 2009
दर्द अपनाता है पराए कौन
दर्द अपनाता है पराए कौन - कौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात - ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं - कौन दुख झेले आज़माए कौन
अब सुकूँ है तो भूलने में है - लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास - देखिये आज याद आए कौन
क्यों डरें जिन्देगी में क्या होगा
कुछ ना होगा तो तजरूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना उम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा
इंतजार
खो गई है मंजिलें आख़िर हम कहाँ जाते।
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इंतजार में चंद पलों के जिंदगी जाती रही ,
काश वो मुहब्बत भरे कुछ पल हमें मिल पाते ।
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कल हाँ कल यही सोंचते जिंदगी सिर्फ़ इंतजार बन गई ,
वो आएगी जरूर यही सोंचकर देखते रहे सबको आते - जाते।
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इंतजार में कल के आज के ये पल नही कट पाते ,
काश आज के इस सफर में तुम मेरे हम सफर बन जाते ।
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Friday, February 13, 2009
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की जब होता है कोई हम-दम होता है
ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशार आ जाते हैं जब तेरी यादों का मौसम होता है
हम तो बचपन में भी अकेले थे
एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे
थीं सजी हसरतें दूकानों पर ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे
ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती मौत के अपने भी सौ झमेले थे
हर ख़ुशी में कोई कमी सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई गर्द इन पलकों पे जमी सी है
कह गए हम किससे दिल की बात शहर में एक सनसनी सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन आग अब भी कहीं दबी सी है
वफ़ा
प्यार इस दुनिया मैं कहीं न पाओगे ।
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भागोगे कितना दूर तुम इस तन्हाई से ,
ऊब जाओगे इस दुनिया की बेवफाई से ।
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कर लो इससे यारी ये वफ़ा दिखायेगी ,
हर वक्त हर कहीं ये साथ निभाएगी ।
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जब कभी गम और परेशानियाँ घेरेंगी तुम्हें ,
रख के सर तेरा अपनी गोद में प्यार से सहलाएगी ।
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जब कभी चाहो इसे आवाज देकर देखना ,
ये कभी माँ कभी बहन तो कभी प्रेमिका बन आएगी ।
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वफ़ा होती है क्या न इससे ज्यादा कोई बताएगा ,
जायेगी साथ तेरे अगर उस जहाँ में "अभी" तू जाएगा ॥
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Thursday, February 12, 2009
मुक्तक
ख़ुद फिसलन पर खड़ा हुआ .....
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मैंने सोंचा था यह मंजर ...
देख के वो डर जाएगा ......
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परछाईं
कभी सहा होगा न इतना - गम ये सहती हैं ।
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कभी देखो तो इन वीरानों को - कभी देखो तो इन बेगानों को ,
कभी ये भी अपने हुआ करते थे - जाते क़दमों की आहटें ये कहती हैं ।
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आज फ़िर मैंने ग़मों को दुखी देखा - दूर दूर तक न थी कहीं कोई खुशी देखा ,
यहीं शायद कहीं वो खोया था - उसकी मिटती हुई परछाइयाँ ये कहती हैं ।
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रुका था वहां पर उसे ढूँढा भी बहुत था - पर वो आता ही कैसे जो इस जहाँ में ही नही था ,
चल कहीं और चलें अब वो न आएगा - दूर दूर तक फैली तन्हाईयाँ ये कहती हैं ।
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Tuesday, February 10, 2009
दीवानगी
बैठे रहते हो दूर तमाशाई बनके मेरे पास नही आते हो ।
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कहते हैं सब की हो गया हूँ मैं तेरा दीवाना,
ये तो सिर्फ़ जानता हूँ मैं की क्या है तेरा फ़साना ।
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जब भी आती है तेरी याद बंद हो जाती हैं ये आँखें ,
रोकता हूँ बहुत पर बोल देती हैं सब ये उखड़ी सांसें ।
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हम जानते हैं की बिन हमारे तन्हा तुम भी न रह पाओगी ,
अगर हुई मिलने की कसक तो भागे चले आओगे ....भागे चले आओगे ........
जज्बात
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,एक झूठ है आधा सच्चा सा ।
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,एक बहाना है अच्छा अच्छा सा ।
जीवन का एक ऐसा साथी है ,जो दूर हो के पास नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
हवा का एक सुहाना झोंका है ,कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा ।
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,कभी अपना तो कभी बेगानों सा ।
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है ।
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है ।
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं ।
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
Sunday, February 8, 2009
जिंदगी
जिंदगी की राहों में,
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एक कली ने छेड़ा मुझे
ले लिया अपनी बाँहों में,
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ले के बाँहों में मुझे
हौले से वो मुस्करायी ,
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देख कर उसको लगा ऐसा
जैसे पतझड़ में बहार आई,
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थी उसके प्यार में
कुछ ऐसी अदा,
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हो गया मेरा सब कुछ
ख़ुद मुझ से ही जुदा,
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गया था भूल मैं की
आती नही पतझड़ में बहार,
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चली गई वो मुझसे दूर
बिता के साथ दिन दो चार ,
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राहों की वो तन्हाई
फ़िर एक बार मैंने पाई,
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और कुछ भी करना जिंदगी में
पर कभी किसी से दिल न लगाना भाई ......
दिल न लगाना भाई ...............................
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Saturday, February 7, 2009
ईमान
ना बचा कुछ भी जिंदगी में ईमान से ,
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डरता हूँ देख हर तरफ़ चेहरे ये अजनबी ,
लगता है जैसे ना था कोई अपना कभी ,
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हो गए हैं कठीन कितने जिंदगी के रास्ते ,
बिकने लगा है प्यार भी जिंदगी के वास्ते ,
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शुरू किया था जब ये सफर ऐ जिंदगी ,
मालूम ना था आएगा एक ये मकाम भी ,
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जाना पड़ेगा छोड़कर उन सबको तनहा यार ,
किया था जिंदगी में कभी जिन्हें बहुत प्यार ,
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जब तक चल सके हम ये वादा निभाएंगे ,
छोडके तन्हाई में हम उनको ना जायेंगे ........
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Friday, February 6, 2009
सजदा
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको ,
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खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए ,
सवाल ये है की किताबों ने क्या दिया मुझको ,
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सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर ,
हसीन सहर सा किसने सजा दिया मुझको ,
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मैं एक जर्रा बुलंदी को छूने निकला था ,
हवा ने थम के जमीं पर गिरा दिया मुझको ....
......................... धुआं बना के .....................
अब क्या कहना
बहुत कह लिया अब क्या कहना ,
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शब्दों पर विश्वास खो गया ,
अर्थ खोखले बने पड़े हैं ,
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कही अनकही ख़त्म हो चुकी ,
अपने से हम बहुत लड़े हैं,
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नहीं शिकायत कोई उन से ,
हमने सीख लिया है सहना ,
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आते - जाते छड़ ने रुक कर ,
पूछी बहुत पुरानी बातें ,
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चुप चुप रोते बीती हैं ,
अपनी तो अधियारी रातें ,
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जो कुछ अपने हिस्से आया ,
उस की शर्त सदा चुप रहना ,
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बहुत कह लिया अब क्या कहना ...............
Thursday, February 5, 2009
फ़साना
पाना हो तेरा दीदार तो पाऊँ कैसे ।
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कुछ इस कदर हुआ हूँ मैं मजबूर ,
हो गया हूँ ख़ुद अपनी जिंदगी से दूर ।
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बहुत आती है याद वो तेरी हसीन मुस्कराहट,
प्यार करने को आते वो तेरे क़दमों की आहट।
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वो आ के पास तेरा धीरे से बैठ जाना ,
कुछ मेरी सुनना कुछ अपनी सुनाना ।
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न भूल पाया हूँ और ना ही भुला पाऊँगा ,
उन बीते हुए पलों को जो बन गए हैं फ़साना ।
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Tuesday, February 3, 2009
फलसफा
शख्स ऐसा भला नही होता ।
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दोस्तों से शिकायतें होंगी ,
दुश्मनों से गिला नही होता ।
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हर परिंदा स्वयं बनाता है ,
अर्श पे रास्ता नही होता ।
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इश्क के कायदे नही होते ,
दर्द का फलसफा नही होता ।
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फितरतन गलतियाँ करेगा वो ,
आदमी देवता नही होता ।
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ख़त लिखोगे हमें कहाँ आख़िर ,
जोगियों का पता नही होता।
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तेरा जाना
सीने में एक चोट सी खाए हुए हैं हम ।
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शिकवा करें जमीन से या आसमान से,
किससे कहें की तेरे सताए हुए हैं हम ।
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बहुत प्यारी थी तेरी हर एक अदा हमारे लिए ,
पर अफ़सोस तुझे जी भर के ना देख पाए हम ।
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चाहा तो बहुत की तुझे खुशी से विदा करें,
पर बहना आंखों से आंसुओं का न रोक पाए हम ।
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जाना तेरा ग़मों की हद थी हमारे लिए,
पर तेरी खुशी के लिए मुस्कुराते रहे हैं हम ।
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तुझको गए हुए भी बहुत दिन गुजर गए ,
अब तक तुझे सीने से लगाये हुए हैं हम ।
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दिल में तेरा ख्याल बसाये हुए हैं हम ..........
Thursday, January 29, 2009
ख्याल
जिस्म से भी मैं तुम्हें होकर जुदा मिल जाऊंगा ।
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दूर कितना भी रहो खोलोगे जब भी आँख तुम ,
मैं सिरहाने पर तुम्हें जागता मिल जाऊंगा ।
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घर के बाहर जब कदम अपना रखोगे एक भी ,
बन के मैं तुम्हें तुम्हारा रास्ता मिल जाऊंगा ।
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मुझपे मौसम कोई भी गुजरे जरा भी डर नही ,
खुश्क टहनी पर भी तुमको मैं हरा मिल जाऊंगा ।
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तुम ख्यालों में सही आवाज दे कर देखना ,
घर के बाहर मैं तुम्हें आता हुआ मिल जाऊंगा ।
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गर तस्सवुर भी मेरे एक शेर का तुम ने किया ,
मैं सुबह घर की दीवारों पे लिखा मिल जाऊंगा ।
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जिस्म से भी मैं तुम्हें होकर जुदा मिल जाऊंगा ........
Wednesday, January 28, 2009
धड़कन
बता दो मुझे रूठ जाने से पहले
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तुम्हारी ये सूरत मेरे मन में बसी है,
तुम सा जहाँ में न कोई हसी है
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खता बन पड़े तो छमा दान देना ,
अकिंचन को नजरों से गिरने न देना
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उम्मीद करता हूँ पतवार तुम हो ,
किनारा भी तुम हो और मंझधार तुम हो
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तुम्हारी खुशी ही तो मेरी खुशी है ,
बता दो मुझे ये क्या दिल्लगी है
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तुम रूठ के न मुझे छोड़ जाना ,
तुम्हारे हृदय में मेरी धड़कन बसी है
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तुम सा जहाँ में न कोई हसी है .................
तेरा ख्याल
सीने में एक चोट सी खाए हुए हैं हम ,
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शिकवा करें जमीं से या आस्मान् से ,
किससे कहें की तेरे सताए हुए हैं हम ,
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तुझको गए हुए भी बहुत दिन गुजर गए ,
अब तक तुझे सीने से लगाये हुए हुए हम,
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चाहा तो बहुत की तुझको खुशी से विदा करें ,
पर बहना आँखों से आंसुओं का न रोक पाए हम ,
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जाना तेरा गमों की हद थी हमारे लिए ,
पर तेरी खुशी के लिए मुस्कुराते रहे हैं हम ,
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बहुत प्यारी थी तेरी हर एक अदा हमारे लिए ,
पर अफ़सोस तुझे जी भर के न देख पाए हम ,
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सीने में एक चोट सी खाए हुए हैं हम ...................................................
Thursday, January 22, 2009
शाम हुई
अहसांसों की एक बस्ती में
रहते रहते शाम हुई ,
सुबह सुनहरी बनी दुपहरी
ढलते ढलते शाम हुई ,
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ख्वाबों ने ख़त लिखे हजारों
उम्मीदों के नाम यहाँ ,
तन्हाई ही तन्हाई थी
पढ़ते पढ़ते शाम हुई ,
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गुलशन गुलशन भटकी यादें
मंजर मंजर भटकी आँखें ,
क़दमों में मंजिल की धुन थी
चलते चलते शाम हुई ,
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इंतजार के उत्सव में
सांसों की काया कोरी ,
आशाओं का कुमकुम चंदन
मलते मलते शाम हुई ,
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Wednesday, January 21, 2009
क्यों बना है भार जीवन
जिन्हें चाहा था मिले वो,
कामना के उपवनों में,
फूल चाहे थे खिले वो,
तृप्ति बनकर प्रेयसी भी,
आ गई जब अंक में,
तब लगा क्यों स्वप्न बंधन,
क्यों बना फ़िर भार जीवन,
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चेतना तो चंचला है,
खोजती हर मोड़ पर सुख,
भोग की जो मेखला है,
नित्य देती है मुझे दुःख,
स्वप्न मेरे टूटते क्यों,
सुन तुम्हारा प्रणय गुंजन,
क्यों बना फ़िर भार जीवन,
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दिव्यता का रूप ले,
वासनाएं पास मेरे,
है सुनाती मधुर स्वर,
देख लो सुंदर सवेरा,
फ़िर ठगा सा क्यों खड़ा हूँ,
रात्रि से मैं क्यों डरा हूँ,
स्वर्ण मंडित आसनों से,
खिन्न है क्यों आज ये मन,
क्यों बना है भार जीवन,
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स्वप्न तो तुमने दिए सब,
स्वप्न भी पूरे किए सब,
फ़िर तुमने विस्मृत किया क्यों,
सत्य जो सन्मुख खड़ा था,
देखने से हूँ डरा क्यों,
दिव्यता क्यों भार बनकर,
छल रहीं हैं आज जीवन,
क्यों बना है भार जीवन,
क्यों बना है भार जीवन ......................................................
............................मेरी अपनी रचना